कुंडली में सप्तम भाव का महत्व

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ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव (सातवां घर) का विशेष महत्व है। यह भाव जीवनसाथी, विवाह, साझेदारी और व्यक्तिगत संबंधों को दर्शाता है। कुंडली में सप्तम भाव को देखकर न केवल विवाह से जुड़ी भविष्यवाणियां की जाती हैं, बल्कि रिश्तों की स्थिरता और गुणात्मकता का भी पता चलता है।

सप्तम भाव का महत्व

सप्तम भाव को “विवाह भाव” भी कहा जाता है।

जीवनसाथी का स्वभाव और व्यक्तित्व: सप्तम भाव में उपस्थित ग्रह और इसकी स्थिति आपके जीवनसाथी के गुणों को प्रकट करती है।

विवाह का समय: सप्तम भाव और उसके स्वामी ग्रह का अध्ययन यह दर्शाता है कि विवाह कब होगा।

रिश्तों की गुणवत्ता: यह भाव रिश्तों में सामंजस्य और तनाव के स्तर का भी संकेत देता है।


सप्तम भाव में ग्रहों का प्रभाव

1. शुक्र ग्रह: यदि शुक्र सप्तम भाव में हो, तो यह प्रेमपूर्ण और संतुलित रिश्तों का संकेत देता है।


2. शनि ग्रह: शनि का प्रभाव विवाह में देरी या कठिनाइयों का संकेत दे सकता है, लेकिन यह रिश्तों को स्थायित्व भी प्रदान करता है।


3. राहु और केतु: इन ग्रहों के प्रभाव से रिश्तों में रहस्य या समस्याएं हो सकती हैं।


4. गुरु ग्रह: गुरु के शुभ प्रभाव से विवाह सुखमय होता है।



सप्तम भाव में दोष और उनके उपाय

मंगल दोष: अगर सप्तम भाव में मंगल का प्रभाव है, तो विवाह में संघर्ष हो सकता है। इसके उपाय के लिए मंगल शांति पूजा करें।

शुक्र दोष: शुक्र के कमजोर होने पर विवाह और प्रेम संबंधों में कठिनाइयां आ सकती हैं। इसके लिए शुक्रवार के दिन सफेद चीजों का दान करें।

राहु-केतु दोष: राहु-केतु की शांति के लिए राहु के बीज मंत्र का जाप करें।


विवाह मुहूर्त और सप्तम भाव

शुभ मुहूर्त निकालते समय सप्तम भाव और उसके स्वामी ग्रह की स्थिति को प्रमुखता दी जाती है। शुभ समय पर विवाह से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।

निष्कर्ष:

सप्तम भाव न केवल विवाह, बल्कि हमारे जीवन में स्थायी रिश्तों की नींव रखता है। कुंडली में इस भाव का अध्ययन करके सही निर्णय लिए जा सकते हैं। यदि समस्याएं हैं, तो वैदिक ज्योतिष के उपाय उनके समाधान में सहायक हो सकते हैं।

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