Your cart is currently empty!
ज्योतिष में दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा का महत्व
Posted by
–
ज्योतिष में दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा का महत्व: जानिए इनका जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के जीवन के उत्थान और पतन का संबंध ग्रहों और उनकी दशाओं से होता है। प्रत्येक ग्रह की अपनी एक दशा होती है, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालती है। इन दशाओं को सही समय पर समझना और उनका सही उपयोग करना व्यक्ति की मानसिक स्थिति, स्वास्थ्य, कैरियर, और रिश्तों पर गहरा असर डाल सकता है। दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा इन तीनों के बारे में जानना किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी होता है, क्योंकि ये सभी ग्रहों के परिवर्तन और उनकी दिशा को स्पष्ट करते हैं। इस ब्लॉग में हम दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा का महत्व और इनके जीवन पर प्रभाव को विस्तार से समझेंगे।
दशा क्या है?
दशा का मतलब होता है ग्रहों की वह समयावधि जो व्यक्ति की कुंडली में किसी ग्रह की स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाती है। हर ग्रह की दशा में उस ग्रह का प्रभाव जीवन पर अधिकतम होता है। मुख्य रूप से, दशा ग्रहों के चलन के आधार पर तय की जाती है और यह समयकाल के अनुसार बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल की दशा चल रही है, तो उस समय मंगल का प्रभाव बढ़ जाएगा, और जीवन में मंगल से जुड़ी घटनाएं और परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी।
किसी भी व्यक्ति की कुंडली में विभिन्न ग्रहों की दशाएं होती हैं, और यह दशाएं व्यक्ति के जीवन के विभिन्न चरणों में प्रभाव डालती हैं। दशा का सही मूल्यांकन करने के लिए कुंडली का अध्ययन अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है।
अंतर्दशा क्या है?
अंतर्दशा, दशा के भीतर एक और उप-दशा होती है, जो मुख्य ग्रह की दशा के अंतर्गत आती है। इसका मतलब है कि जब किसी ग्रह की दशा चल रही हो, तो उसके भीतर दूसरे ग्रहों की उप-दशाएं सक्रिय हो सकती हैं, जिनका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर विशिष्ट रूप से पड़ता है। अंतर्दशा का प्रभाव व्यक्ति की मानसिक स्थिति, जीवन के निर्णयों और कार्यों पर होता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति की मुख्य दशा सूर्य की है और उसमें चंद्र की अंतर्दशा चल रही है, तो उस समय सूर्य के प्रभाव के साथ-साथ चंद्र का प्रभाव भी जीवन पर पड़ सकता है। इस समय व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति, मानसिक स्थिति और रिश्तों में चंद्र का प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है।
प्रत्यंतरदशा क्या है?
प्रत्यंतरदशा वह समयावधि होती है जब किसी ग्रह की अंतर्दशा के भीतर तीसरी स्तर की उप-दशा सक्रिय होती है। यह उपदशा बहुत ही छोटे समय के लिए होती है, लेकिन इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर महत्वपूर्ण हो सकता है। प्रत्यंतरदशा किसी विशेष ग्रह की स्थिति के आधार पर निर्धारित होती है, और यह उस ग्रह के प्रभाव को और भी विशिष्ट बना देती है।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति की मुख्य दशा मंगल की है, अंतर्दशा चंद्र की है और प्रत्यंतरदशा बुध की है, तो उस समय मंगल, चंद्र और बुध का मिलाजुला प्रभाव व्यक्ति के जीवन में देखा जाएगा। प्रत्यंतरदशा से व्यक्ति के कार्यों में तेजी, निर्णयों में स्पष्टता, और कभी-कभी कुछ खास परिस्थितियों का सामना भी हो सकता है।
दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा का जीवन पर प्रभाव
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा के प्रभाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं। जैसे यदि सूर्य की दशा चल रही हो और अंतर्दशा में राहु हो, तो स्वास्थ्य में आंतरिक कष्ट हो सकता है।
- व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन: ग्रहों की दशाएं पेशेवर जीवन में सफलता और असफलता का कारण बन सकती हैं। अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा व्यक्ति के कार्यों में बदलाव ला सकती हैं और कुछ नए अवसर भी उत्पन्न कर सकती हैं।
- मानसिक स्थिति: दशाओं के प्रभाव से मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। कुछ दशाएं तनाव और मानसिक अस्वस्थता का कारण बन सकती हैं, जबकि कुछ दशाएं मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ावा देती हैं।
- रिश्तों पर प्रभाव: दशा और अंतर्दशा का रिश्ता और पारिवारिक जीवन पर गहरा असर हो सकता है। जैसे, अगर शुक्र की दशा हो और अंतर्दशा में शनि हो, तो रिश्तों में कुछ बाधाएं और समझौते की आवश्यकता हो सकती है।
दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा के उपाय
- ग्रहों की पूजा: प्रत्येक ग्रह की शांति के लिए उसकी विशेष पूजा करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, सूर्य की दशा में सूर्य पूजा और मंगल की दशा में हनुमान पूजा लाभकारी हो सकती है।
- मंत्र जाप: अपने ग्रहों की दशा के अनुसार मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है। यह मानसिक शांति और ग्रहों के प्रभाव को संतुलित करने में मदद करता है।
- दान और व्रत: किसी ग्रह की दशा में उस ग्रह से संबंधित वस्त्रों या धातुओं का दान करना और व्रत रखना भी एक अच्छा उपाय हो सकता है। जैसे, बुधवार को हरे रंग के वस्त्र का दान करना बुध ग्रह को प्रसन्न कर सकता है।
- रत्नों का धारण: ग्रहों के दोष को दूर करने के लिए उचित रत्नों का धारण भी किया जा सकता है, जैसे कि यदि शनि की दशा चल रही हो, तो नीला सफेद रत्न पहनना लाभकारी हो सकता है।
निष्कर्ष
दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतरदशा का अध्ययन ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि ये ग्रहों के प्रभाव को व्यक्त करने का तरीका हैं। इनके माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझा जा सकता है और समय के अनुसार उचित उपाय किए जा सकते हैं। अगर आप अपनी दशा को समझकर सही समय पर उपाय करते हैं, तो आप जीवन में शांति, सफलता और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
और जानिए :
महाकालेश्वर मंदिर के बारे में
कुम्भ मेला के बारे में
उज्जैन में स्थित 84 महादेव के बारे में
ओंकारेश्वर दर्शन के बारे में
उज्जैन दर्शन के बारे में
कुंडली के दोषों के बारे में
Recent Posts
Categories
- Information (24)
- Jyotish (50)
- Kundali (33)
- Pooja (9)
- remedies (10)
- Uncategorized (12)
Tag Cloud
कुंडली-दोष ग्रह शांति ग्रहों का प्रभाव जीवन में दशा का प्रभाव ज्योतिष ज्योतिष उपाय ज्योतिष और शादी ज्योतिष दशा ज्योतिष में मंगल ज्योतिषीय-उपाय ज्योतिषीय ग्रह प्रत्यंतरदशा बुध ग्रह भारतीय ज्योतिष मंगल और विवाह मंगल का प्रभाव मंगल ग्रह मंगल ग्रह का प्रभाव मंगल दोष योग और राशि राशि और स्वास्थ्य राशि का प्रभाव राशि के अनुसार आहार राशिफल शनि के उपाय शनि दोष शनि पूजा शुक्र ग्रह स्वस्थ जीवन स्वास्थ्य पर राशि का असर
Leave a Reply